उज़ैर रहमान के शेर
करता रहा मैं मिन्नतें कम की न कुछ दुआ
हासिल हुआ न कुछ तो ख़ुदा बे-असर लगा
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है प्यार का ये खेल कहाँ मक्र से ख़ाली
लेकिन दिल-ए-नादाँ को दिखाना नहीं आया
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