पल्लव मिश्रा
ग़ज़ल 11
अशआर 13
मैं एक ख़ाना-ब-दोश हूँ जिस का घर है दुनिया
सो अपने काँधे पे ले के ये घर भटक रहा हूँ
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
मैं तुझ से मिलने समय से पहले पहुँच गया था
सो तेरे घर के क़रीब आ कर भटक रहा हूँ
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
ये तय हुआ था कि ख़ूब रोएँगे जब मिलेंगे
अब उस के शाने पे सर है तो हँसते जा रहे हैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
ये जिस्म तंग है सीने में भी लहू कम है
दिल अब वो फूल है जिस में कि रंग-ओ-बू कम है
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
मैं अपनी मौत से ख़ल्वत में मिलना चाहता हूँ
सो मेरी नाव में बस मैं हूँ नाख़ुदा नहीं है
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
चित्र शायरी 1
तुम्हारी दुनिया के बाहर अंदर भटक रहा हूँ मैं बा'द-ए-तर्क-ए-जहाँ यहीं पर भटक रहा हूँ मैं तुझ से मिलने समय से पहले पहुँच गया था सो तेरे घर के क़रीब आ के भटक रहा हूँ मैं एक ख़ाना-ब-दोश हूँ जिस का घर है दुनिया सो अपने काँधों पे ले के ये घर भटक रहा हूँ मैं हर क़दम पर सँभल सँभल कर भटकने वाला भटकने वालों से काफ़ी बेहतर भटक रहा हूँ
वीडियो 6
This video is playing from YouTube
