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पंडित दया शंकर नसीम लखनवी

1811 - 1845 | लखनऊ, भारत

19वीं सदी में लखनऊ के अग्रणी शायरों में से एक, प्रख्यात मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम के रचयिता

19वीं सदी में लखनऊ के अग्रणी शायरों में से एक, प्रख्यात मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम के रचयिता

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी

ग़ज़ल 44

अशआर 15

दोज़ख़ जन्नत हैं अब मेरी नज़र के सामने

घर रक़ीबों ने बनाया उस के घर के सामने

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समझा है हक़ को अपने ही जानिब हर एक शख़्स

ये चाँद उस के साथ चला जो जिधर गया

लाए उस बुत को इल्तिजा कर के

कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा कर के

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बुतों की गली छोड़ कर कौन जाए

यहीं से है काबा को सज्दा हमारा

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क्या लुत्फ़ जो ग़ैर पर्दा खोले

जादू वो जो सर पे चढ़ के बोले

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मसनवी 1

 

पुस्तकें 29

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