परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल 42
अशआर 39
मुद्दत से इश्तियाक़ है बोस-ओ-कनार का
गर हुक्म हो शुरूअ' करे अपना काम हिर्स
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere