परवेज़ अख़्तर
ग़ज़ल 9
नज़्म 1
अशआर 1
सारे पत्थर नहीं होते हैं मलामत का निशाँ
वो भी पत्थर है जो मंज़िल का निशाँ देता है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere