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पीरज़ादा क़ासीम

1943 | कराची, पाकिस्तान

समाजिक और राजनैतिक व्यंग पर अधारित शायरी के लिए विख्यात पाकिस्तानी शायर

समाजिक और राजनैतिक व्यंग पर अधारित शायरी के लिए विख्यात पाकिस्तानी शायर

पीरज़ादा क़ासीम के वीडियो

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

पीरज़ादा क़ासीम

पीरज़ादा क़ासीम

पीरज़ादा क़ासीम

पीरज़ादा क़ासीम

अब हर्फ़-ए-तमन्ना को समाअत न मिलेगी

पीरज़ादा क़ासीम

इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए

पीरज़ादा क़ासीम

जिस तरफ़ नज़र कीजे वहशतों का सामाँ है

पीरज़ादा क़ासीम

बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए

पीरज़ादा क़ासीम

याद क्या दस्त-ए-हुनर है कि सँवरता गया मैं

पीरज़ादा क़ासीम

पीरज़ादा क़ासीम

अब हर्फ़-ए-तमन्ना को समाअत न मिलेगी

पीरज़ादा क़ासीम

एक से सिलसिले हैं सब हिज्र की रुत बता गई

पीरज़ादा क़ासीम

कुदूरतों के दरमियाँ अदावतों के दरमियाँ

पीरज़ादा क़ासीम

कार-ए-ख़ुलूस-ए-यार का मुझ को यक़ीन आ गया

पीरज़ादा क़ासीम

कार-ए-ख़ुलूस-ए-यार का मुझ को यक़ीन आ गया

पीरज़ादा क़ासीम

ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ

पीरज़ादा क़ासीम

ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

पीरज़ादा क़ासीम

ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं

पीरज़ादा क़ासीम

चराग़ हूँ कब से जल रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखिए

पीरज़ादा क़ासीम

चाँद भी बुझा डाला दिल दुखाने वालों ने

पीरज़ादा क़ासीम

ज़ख़्म दबे तो फिर नया तीर चला दिया करो

पीरज़ादा क़ासीम

नज़र में नित-नई हैरानियाँ लिए फिरिए

पीरज़ादा क़ासीम

बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए

पीरज़ादा क़ासीम

बे-दिली से हँसने को ख़ुश-दिली न समझा जाए

पीरज़ादा क़ासीम

ये हादिसा मुझे हैरान कर गया सर-ए-शाम

पीरज़ादा क़ासीम

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Pirzada Qasim in conversation with Dr. Zamarrud Mughal for Rekhta.org

पीरज़ादा क़ासीम

शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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