प्रवीण शर्मा शजर के शेर
मिरे ख़त को अगर पढ़ना ज़रा सा ग़ौर से पढ़ना
मिरे ख़त में शिकायत के 'अलावा भी बहुत कुछ है
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ख़ुदा का शुक्र परेशानियाँ मिलीं हम को
वगरना बच्चे ही रहते बड़े न हो पाते
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माना कि रात तारों को गिनना 'अजीब है
लेकिन किसी को नींद न आए तो क्या करे
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मुझ से कैसे निभाओगी बोलो
मेरे हिस्से में जाएदाद नहीं
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देखते हैं कि मोहब्बत में तरक़्क़ी क्या हो
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
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अगर न तोड़ता बैसाखियाँ हमारी समय
हम अपने पैरों पे शायद खड़े न हो पाते
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