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क़ाबिल अजमेरी

1931 - 1962 | हैदराबाद, पाकिस्तान

क़ाबिल अजमेरी

ग़ज़ल 21

अशआर 31

आज 'क़ाबिल' मय-कदे में इंक़लाब आने को है

अहल-ए-दिल अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक गए

कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार

अपने दामन में दश्त-ए-ग़म की ख़ाक

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कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ

'क़ाबिल' ग़म-ए-दौराँ की अभी धूप कड़ी है

ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शुऊर जाएगा

तुम वहाँ तक तो जाओ हम जहाँ तक गए

रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब

चंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं

पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 4

 

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