क़ादिर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 21
अशआर 1
कितने मह-ओ-अंजुम हैं ज़िया-पाश अज़ल से
लेकिन न हुई कम दिल-ए-इंसाँ की सियाही
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere