क़द्र बिलग्रामी के शेर
जहाँ गुलशन वहाँ गुल है जहाँ गुल है वहाँ बू है
जहाँ उल्फ़त वहाँ मैं हूँ जहाँ मैं हूँ वहाँ तू है
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अफ़्सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़
लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ
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देखना ग़ाफ़िल न रहना चश्म-ए-तर से देखना
आइना जब देखना मेरी नज़र से देखना
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