क़मर इक़बाल
ग़ज़ल 18
अशआर 1
बिछड़ गया है कहाँ कौन कुछ पता ही नहीं
सफ़र में जैसे कोई अपने साथ था ही नहीं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere