क़मर जलालाबादी के शेर
कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती है
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मिरे ख़ुदा मुझे थोड़ी सी ज़िंदगी दे दे
उदास मेरे जनाज़े से जा रहा है कोई
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राह में उन से मुलाक़ात हो गई
जिस से डरते थे वही बात हो गई
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