क़मर जलालवी
ग़ज़ल 56
अशआर 39
सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लूँ ग़रीब-ख़ाने को
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ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
आह करता हूँ तो सय्याद ख़फ़ा होता है
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पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं
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क़ितआ 7
पुस्तकें 7
चित्र शायरी 1
वीडियो 41
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