क़ासिम इमाम के शेर
हम अपनी ज़िंदा लाशों की बुझाएँ तिश्नगी कैसे
यहाँ पानी पे उभरी लाश के टुकड़े भी आते हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere