क़ासिम जलाल के शेर
सुबूत माँगते हैं वो मिरी वफ़ा का 'जलाल'
हर इक से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ किया है जिन के लिए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere