रफ़ीक़ संदेलवी
ग़ज़ल 17
नज़्म 31
अशआर 3
डूब जाएँ न फूल की नब्ज़ें
ऐ ख़ुदा मौसमों की साँसें खोल
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सूरज की तरह मौत मिरे सर पे रहेगी
मैं शाम तलक जान के ख़तरे में रहूँगा
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मैं इक पहाड़ी तले दबा हूँ किसे ख़बर है
बड़ी अज़िय्यत में मुब्तिला हूँ किसे ख़बर है
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