राही मासूम रज़ा
लेख 1
अशआर 5
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई
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हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें
हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं
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दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है
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ज़िंदगी ढूँढ ले तू भी किसी दीवाने को
उस के गेसू तो मिरे प्यार ने सुलझाए हैं
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ग़ज़ल 11
नज़्म 16
पुस्तकें 16
चित्र शायरी 9
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद जिन आँखों में काजल बन कर तैरी काली रात उन आँखों में आँसू का इक क़तरा होगा चाँद रात ने ऐसा पेँच लगाया टूटी हाथ से डोर आँगन वाले नीम में जा कर अटका होगा चाँद चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद
हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग उस बस्ती के बाज़ारों में रोज़ कहें अफ़्साने लोग यादों से बचना मुश्किल है उन को कैसे समझाएँ हिज्र के इस सहरा तक हम को आते हैं समझाने लोग कौन ये जाने दीवाने पर कैसी सख़्त गुज़रती है आपस में कुछ कह कर हँसते हैं जाने पहचाने लोग फिर सहरा से डर लगता है फिर शहरों की याद आई फिर शायद आने वाले हैं ज़ंजीरें पहनाने लोग हम तो दिल की वीरानी भी दिखलाते शरमाते हैं हम को दिखलाने आते हैं ज़ेहनों के वीराने लोग उस महफ़िल में प्यास की इज़्ज़त करने वाला होगा कौन जिस महफ़िल में तोड़ रहे हों आँखों से पैमाने लोग
आओ वापस चलें रात के रास्ते पर वहाँ नींद की बस्तियाँ थीं जहाँ ख़ाक छानीं कोई ख़्वाब ढूँडें कि सूरज के रस्ते का रख़्त-ए-सफ़र ख़्वाब है और इस दिन के बाज़ार में कल तलक ख़्वाब कमयाब था आज नायाब है