रईस फ़रोग़
ग़ज़ल 32
नज़्म 32
अशआर 20
लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं
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हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते
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मैं ने कितने रस्ते बदले लेकिन हर रस्ते में 'फ़रोग़'
एक अंधेरा साथ रहा है रौशनियों के हुजूम लिए
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मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
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अपने हालात से मैं सुल्ह तो कर लूँ लेकिन
मुझ में रू-पोश जो इक शख़्स है मर जाएगा
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चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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