राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
ग़ज़ल 15
अशआर 15
शाम-ए-अवध ने ज़ुल्फ़ में गूँधे नहीं हैं फूल
तेरे बग़ैर सुब्ह-ए-बनारस उदास है
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रह-ए-क़रार अजब राह-ए-बे-क़रारी है
रुके हुए हैं मुसाफ़िर सफ़र भी जारी है
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बे-दीन हुए ईमान दिया हम इश्क़ में सब कुछ खो बैठे
और जिन को समझते थे अपना वो और किसी के हो बैठे
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तेरा होना न मान कर गोया
तुझ को तस्लीम कर रहा हूँ मैं
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दिल का सुकून रिज़्क़ के हंगामे खा गए
सुख आदमी का चंद निवालों ने डस लिया
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