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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रम्ज़ी असीम

ग़ज़ल 11

अशआर 8

तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत में

किसे कहूँ मिरे अहबाब की ख़बर रक्खे

खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना

कितने दरिया ही मिरी प्यास बुझाने आते

मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे

मैं अपने आप से इतने सवाल करता हूँ

इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे

पहले हम लोग मोहब्बत से मिला करते थे

तुम्हारे साथ कई रंज बाँटने हैं हमें

सो एक दिन के लिए ज़िंदगी से फ़ुर्सत लो

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इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा

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