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राणा गन्नौरी

1938 | दिल्ली, भारत

राणा गन्नौरी

ग़ज़ल 7

अशआर 16

हमारा दिल तो ग़म में भी ख़ुशी महसूस करता है

वही मुश्किल में रहते हैं जो ग़म को ग़म समझते हैं

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ख़ुद तराशना पत्थर और ख़ुदा बना लेना

आदमी को आता है क्या से क्या बना लेना

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ज़िंदगी का भी किया भरोसा है

ज़िंदगी की क़सम भी क्या खाऊँ

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ख़ुदा मैं सुन रहा हूँ आहटें उस वक़्त की

जब तिरी दुनिया का हर बंदा ख़ुदा हो जाएगा

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तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ

तुम्हारे आने की हालाँकि कोई आस नहीं

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