आए अगर क़यामत तो धज्जियाँ उड़ा दें
फिरते हैं जुस्तुजू में फ़ित्ने तिरी गली के
रसा, मोहम्मद हयात बख़्श (1870-1913) ‘दाग़’ देहलवी के पसंदीदा शागिर्दों में थे और उस्ताद का असर इतना गहरा था कि अक्सर दोनों के अशआ’र में फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है। मुस्तफ़ाबाद, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) में पैदा हुए और वफ़ात रामपुर में हुई। आख़िरी दिनों में बीमार रहने लगे थे, फ़लिज का असर भी हो गया था, मगर तबीअ’त की शोख़ी बरक़रार थी।