रतन सिन्ह की कहानियाँ
पनाह-गाह
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है जो विभाजन के बाद भारत में होने पर भी ख़ुद को पाकिस्तान स्थित अपने घर के कमरे में ही महफू़ज़ महसूस करता है। बीती ज़िंदगी में जितनी भी मुसीबतों आईं, उन सबसे बचने के लिए उसने उसी कमरे में पनाह ली है। अब वह भारत में होकर भी उसी कमरे में पनाह लिए हुए है। इस दौरान वह सोचता है कि उसकी यह पनाह इतनी बड़ी हो जाए कि उसमें सब लोग समा जाएं और हर परेशान-हाल को कुछ सुकून मिल जाए।
रूदाद पागलख़ाने की
कहानी एक पागलखाने की पृष्ठभूमि में विभाजन की त्रासदी के गिर्द घूमती है। एक एक्सपर्ट डॉक्टर एक दिन बरेली के पागलख़ाने में आया और सभी पागलों को खुला छोड़ देने और बाक़ी तमाम स्टाफ़ को छुप जाने के लिए कहा। डॉक्टर और स्टाफ़ की गै़र मौजदूगी में पागलों ने वे सब कारनामे अंजाम दिए जो समाज में रहने वाले समझदार और पढ़े लिखे लोग आए दिन करते रहते हैं। साथ ही उन्होंने वह सब भी बयान किया जो विभाजन के दौरान हुआ था... बंटवारा, हिंसा, आग-ज़नी, लूटमार और विस्थापन का दर्द।
काठ का घोड़ा
ज़िंदगी की भाग-दौड़ में फँसे एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो अपने दोस्तों से जीवन की रेस में काफ़ी पीछे रह गया है। उसके दोस्त अफ़सर, कलक्टर और मिनिस्टर बन गए, जबकि वह ठेला खींचने लगा। एक रोज़ उसका ठेला सड़क के ऐसे मोड़ पर फँस गया जहाँ वह कोशिश करके भी उसे आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। पीछे उसके ट्रैफिक का जाम लगता जा रहा है। वहाँ खड़े हुए वह ख़ुद को उस काठ के घोड़े की तरह महसूस करता है जिसे वह बचपन में मेले से ख़रीद कर लाया था।
ज़िंदगी से दूर
कहानी चित्रकला, स्थापत्य और मूर्तिकला जैसे कला के विषयों पर चर्चा करती है जो अलग-अलग होने के बाद भी समान है। एक रोज़ एलोरा की मूर्तियाँ अजंता के चित्रों से मिलने गईं और उन्होंने कहा कि जो भी उन्हें देखने आता है वही ताज महल की तारीफ़ करता है। इससे उन्हें पता चला कि यही परेशानी अजंता के चित्रों की भी है। फिर दोनों मिलकर ताज महल को तबाह करने के लिए चल पड़ते हैं। मगर जब वे ताज महल में घूम-घूम कर वहाँ की चीज़ें देखते हैं तो उन्हें महसूस होता है कि वह भी वही है जो वे ख़ुद हैं... यानी कला।
बिखरे हुए सपने
कहानी विभाजन के साए में दो दोस्तों के स्कूल के दिनों में देखे गए ख़्वाब और फिर उसके बिखर जाने की दास्तान है। स्कूल के दिनों में उन्होंने बकरी पालने का सपना देखा था। उसे बकरी मिल जाती है और वह सोचता है कि जब बकरी बड़ी हो जाएगी तो वह उसका दूध दादी और कच्चे घर में रहने वाली कम उम्र की माँ को पिलाएगा। मगर उसे बहुत अफ़सोस होता है जब पता चलता है कि बकरी इतना कम दूध देती है कि वह उसके बच्चों के लिए भी कम पड़ जाता है। फिर उसे उस बकरी को हामिद को दिखाने का ख़याल आता है मगर तब तक हामिद उससे इतनी दूर चला जाता है कि उसे उसकी कोई ख़बर भी नहीं मिलती।
लहू लहू रास्ते
यह कहानी सामाजिक भेदभाव के गिर्द घूमती है। गाँव में कुछ ऊँची ज़ात वाले लोगों को छोड़कर किसी को भी सिर उठाकर चलने की इजाज़त नहीं थी। मगर एक रोज़ एक शख़्स ने ठाकुर की हवेली के सामने से गुज़रते हुए ऊपर की तरफ़ देखा तो उसे वहाँ कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। उसकी रौशनी में उसका सिर ऊँचा उठता ही चला गया मगर उसकी क़ीमत उसे अपने सिर को धड़ से जुदा करके चुकानी पड़ी। फिर कुछ और लोगों ने ऐसा किया और उनके सिर भी धड़ से अलग कर दिए गए। पहले शख़्स का बेटा, जो अपने बाप की मौत से बदहवास हो गया था, वह सोचता है कि एक दिन तो ऐसा आएगा जब सभी लोग सिर उठाकर चलेंगे।
पानी पर लिखा नाम
एक ऐसे शख़्स की कहानी जो दरिया के किनारे बैठा लहरों पर अपना नाम लिखने की कोशिश कर रहा है। उससे कुछ दूर ही एक बच्चा रेत का घरौंदा बना रहा है। न तो वह पानी पर नाम लिख पा रहा है और न ही बच्चे का घरौंदा बन पा रहा है। इसी बीच दरिया में एक टहनी बहती हुई आती है। बच्चा उसे निकाल लेता है और उसके सहारे अपना घरौंदा बना लेता है। इस पर वह शख़्स उसे मुबारकबाद देने जाता है तो बच्चा कहता है कि उसने उसका नाम पानी पर लिखा देखा था इसीलिए उसका घरौंदा भी बन सका।
सियालकोट का लाड़ा
एक ऐसे शख़्स की कहानी है जो बचपन में एक गुलियानी से मोहब्बत किया करता था। गलियों में सुइयाँ, कंधोइया बेचने वाली राजस्थान की इन गुलियानियों ने बड़े घरों में अपने पक्के जज्मान भी बना रखे थे। उन घरों में जब कोई खुशी का मौक़ा आता तो ये गुलियानियाँ वहाँ नाचती गाती थी। ऐसे ही एक घर का नौजवान लड़का अपने बचपन में एक गुलियानी की मोहब्बत में पड़ जाता है और जवान होने तक उसी के इश्क़़ में मुब्तला रहता है।
एक गाथा
प्राचीन काल की एक घटना के गिर्द घूमती यह कहानी इंसानी ज़िंदगी में माया के प्रभाव को बयान करती है। एक जंगल में एक महाऋषि समाधिस्थ थे। उन्होंने अपनी देखभाल के लिए एक कन्या को रख रखा था। वह उनकी देखभाल करती और जंगल में सुख से रहती। फिर उसने मन बहलाने के लिए कुछ फूलों को कन्याओं में बदल दिया। इसके बाद एक रात वह एक नदी के पास गई और वहाँ उसे कलयुग की झलक दिखी और वह उसकी तरफ खिंचती ही चली गई। उसे बचाने के लिए महाऋषि को समाधि से वापस आना पड़ा।
एक नाव के सवार
कहानी में ज़िंदगी के दो अहम पहलू सुख और दुख को बयान किया गया है, जो दोनों एक ही नाव में सवार हैं। सुख बहुत खु़श है और नाविक से कहता है कि वह नाव को और तेज़ चलाए, क्योंकि उस किनारे पर बहुत सारा सुख उसका इंतिज़ार कर रहा है। वहीं दुख बहुत दुखी है और वह चाहता है कि नाव धीरे चले, क्योंकि उस पार और दुख उसका इंतिज़ार कर रहा है। इसी दरमियान नाव भंवर में फँस जाती है। किसी तरह सुख और नाविक मिलकर नाव को भंवर से निकाल लेते हैं। इसके बाद सुख सोचता है कि यदि वह दुख की भी मदद करे तो हो सकता है उसका भी कुछ दुख कम हो जाए। और वह उसकी तरफ़ चल पड़ता है।
उजड़ा हुआ टीला
यह कहानी इंसानी स्वभाव और उसके कर्मों का नफ्सियाती तजज़िया करती है। एक दिन वह ख़ुद को एक उजड़े हुए टीले पर पाता है। उसके पास कोई नहीं है। वह तन्हा है। फिर एक गिलहरी आती है और वह बबूल के कांटे से घायल हो जाती है। उसके बाद पेड़ की जड़ की एक दरार से एक ख़ूबसूरत लड़की निकलती है। वह उसके लिए पानी लाने और खाने पकाने के लिए कहती है। इतने में टीले के गिर्द एक बस्ती आबाद हो जाती है। मगर जब खाना बनता है तो कुछ लोग तो अपनी ज़रूरत से कहीं ज़्यादा खाना ले लेते हैं जबकि कुछ लोग भूखे ही रह जाते हैं। इससे उनके बीच दंगा होता है और वह बस्ती फिर से उजाड़ टीला बन जाती है।