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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रौनक़ नईम

ग़ज़ल 4

 

अशआर 5

इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए

जिन दरख़्तों का कोई साया नहीं

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गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है

अब अपना शहर भी लगता है अजनबी की तरह

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हालात-ए-ख़ूँ-आशाम से ग़ाफ़िल नहीं लेकिन

ज़ुल्म तिरे हाथ पे बैअ'त नहीं करते

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सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे

आदमी आदमी से जुदा ही रहा

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बेहतर है अब दूर रहो तुम टेसू के इन फूलों से

शोख़ बहुत है इन की सुर्ख़ी आईना दिखलाए तो

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पुस्तकें 2

 

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