उपनाम : 'साइल'
मूल नाम : नवाब सिराजुद्दीन अहमद ख़ान
जन्म : 29 Mar 1867 | दिल्ली
निधन : 25 Sep 1945 | दिल्ली, भारत
आह करता हूँ तो आते हैं पसीने उन को
नाला करता हूँ तो रातों को वो डर जाते हैं
दाग़ की बनाई हुई लफ्ज़ व मायनी की रिवायत को बरतने और आगे बढ़ानेवालों में साइल का नाम बहुत अहम है. साइल दाग़ के शागिर्द भी थे और फिर उनके दामाद भी हुए. उन्होंने लगभग सारे क्लासिकी विधाओं में शायरी की और अपने वक़्त में बरपा होनेवाली शेरी महफ़िलों और मुशायरों में बहुत लोकप्रिय थे.
नवाब सिराजुद्दीन खां साइल की पैदाइश 25 मार्च 1864 को दिल्ली में हुई .वह मिर्ज़ा शहाबुद्दीन अहमद खां साक़िब के बेटे और नवाब ज़ियाउद्दीन अहमद खां नय्यर दरख्शां जागीरदार लोहारू के पोते थे. बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया, अतः चचा दादा ने उनकी परवरिश की. ग़ालिब के शागिर्द नवाब ग़ुलाम हुसैन खां मह्व की शागिर्दी का गौरव प्राप्त हुआ.
दाग़ के इन्तेक़ाल के बाद साइल और बेख़ुद देहलवी दाग़ के उत्तराधिकारी के दावेदार थे, इसलिये उन दोनों के समर्थकों में तकरार और खीँचतान होती रही. शाहिद अहमद देहलवी ने उन खेंचतान के बारे में लिखा है, “देहली में बेख़ुद वालोँ और साइल वालों के बड़े बड़े पाले होते.अक्सर मुशायरों में मार-पीट तक की नौबत पहुँच जाती. साइल साहेब उन झगड़ों से बहुत घबराते थे और अन्ततः उन्होंने देहली के मुशायरों में शरीक होना ही छोड़ दिया.”
25 अक्टूबर 1945 को देहली में साइल का इन्तेक़ाल हुआ और संदल खाना बाबर महरौली में दफ़न किया गया.