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सदा अम्बालवी

1951 | गुड़गाँव, भारत

राजेंद्र सिंह/लोकप्रिय शायर/अपनी गज़ल 'वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे' के लिए मशहूर, जिसे गाया गया है

राजेंद्र सिंह/लोकप्रिय शायर/अपनी गज़ल 'वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे' के लिए मशहूर, जिसे गाया गया है

सदा अम्बालवी

ग़ज़ल 51

नज़्म 10

अशआर 23

बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी

बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता

दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले

अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे

उफ़ सियासत ने उसे जोड़ दिया मज़हब से

बुझ गई शम्अ की लौ तेरे दुपट्टे से तो क्या

अपनी मुस्कान से महफ़िल को मुनव्वर कर दे

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले

पुस्तकें 1

 

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चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

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चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

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यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई

गुलाम अब्बास खान

यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई

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वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

राधिका चोपड़ा

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

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वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

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वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

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