सादिक़-उल-क़ादरी के शेर
कुछ इस तरह शरीक तिरी अंजुमन में हूँ
महसूस हो रही है ख़ुद अपनी कमी मुझे
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न पूछ कैसे गुज़रती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
बड़ी तवील कहानी है फिर कभी ऐ दोस्त
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