सईदुल ज़फर चुग़ताई
ग़ज़ल 12
नज़्म 11
अशआर 3
बे-कसी के दर्द ने लौ दी जल उट्ठा इक चराग़
रफ़्ता रफ़्ता उस से फिर सारा जहाँ रौशन हुआ
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ये तो नहीं कि ख़्वाब में दुनिया बदल गई
बेदार जब हुए तो तसव्वुर नया मिला
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इक जस्त में तो कोई न पहुँचा कमाल तक
इक उम्र सर खपा के ही जो कुछ मिला मिला
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