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सफ़दर मिर्ज़ापुरी

1870 - 1930 | मिर्ज़ापुर, भारत

सफ़दर मिर्ज़ापुरी

ग़ज़ल 69

अशआर 6

घर तो क्या घर का निशाँ भी नहीं बाक़ी 'सफ़दर'

अब वतन में कभी जाएँगे तो मेहमाँ होंगे

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इक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ सही

दिल की आख़िर कोई क़ीमत होगी

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ज़रा वो ख़ाक में मिलने दे ख़ून-ए-शहीदाँ को

ख़ुदा तौफ़ीक़ दे इतनी ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ को

जौर-ए-अफ़्लाक की शिरकत की ज़रूरत क्या है

आप काफ़ी हैं ज़माने को सताने के लिए

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क़ीमत-ए-जिंस-ए-वफ़ा नीम-निगाही तौबा

ऐसी बातें करें आप कि सौदा बने

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