सफ़दर सलीम सियाल
ग़ज़ल 11
नज़्म 1
अशआर 3
अपनी साँसें मिरी साँसों में मिला के रोना
जब भी रोना मुझे सीने से लगा के रोना
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ख़ुद-सर है अगर वो तो मरासिम न बढ़ाओ
ख़ुद्दार अगर हो तो अना तंग करेगी
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इक ख़्वाब सा देखा था तो मैं काँप उठा था
फिर मैं ने कोई ख़्वाब न देखा उसे कहना
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