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साग़र आज़मी

1944 - 2004 | बाराबंकी, भारत

साग़र आज़मी

ग़ज़ल 8

अशआर 13

तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ

छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ

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कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो

क्या आग लगाओगे बर्फ़ीली चटानों में

इतना नाराज़ हो क्यूँ उस ने जो पत्थर फेंका

उस के हाथों से कभी फूल भी आया होगा

तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा

ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा

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शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास

सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने अपने मीर के पास

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वीडियो 9

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Mushaira Saghar Azmi Ghazal HallaGulla Com Part 1

साग़र आज़मी

Mushaira Saghar Azmi Ghazal HallaGulla Com Part 2

साग़र आज़मी

Reciting own poetry

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साग़र आज़मी

Saghar Azmi - 2001 - Mumbai - Part - 03

साग़र आज़मी

Saghar Azmi - Lucknow Mahotsav

साग़र आज़मी

Saghar Azmi 1

साग़र आज़मी

Saghar Azmi 2

साग़र आज़मी

फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में

साग़र आज़मी

ऑडियो 3

प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे

फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में

रात के अँधेरों को रौशनी वो क्या देगा

Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

 

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