साग़र निज़ामी
ग़ज़ल 16
नज़्म 5
अशआर 17
आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी
एक छलकते साग़र में मय भी है और मय-ख़ाना भी
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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