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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सग़ीर मलाल

ग़ज़ल 19

अशआर 16

तअज्जुब उन को है क्यूँ मेरी ख़ुद-कलामी पर

हर आदमी का कोई राज़-दाँ ज़रूरी है

ज़माने भर से उलझते हैं जिस की जानिब से

अकेले-पन में उसे हम भी क्या नहीं कहते

है एक उम्र से ख़्वाहिश कि दूर जा के कहीं

मैं ख़ुद को अजनबी लोगों के दरमियाँ देखूँ

ज़रूरत उस की हमें है मगर ये ध्यान रहे

कहाँ वो ग़ैर-ज़रूरी कहाँ ज़रूरी है

उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले

फिर यही लोग कहीं का नहीं रहने देते

पुस्तकें 6

 

चित्र शायरी 1

 

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