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सहबा लखनवी

1919 - 2002 | कराची, पाकिस्तान

सहबा लखनवी

ग़ज़ल 4

 

नज़्म 18

अशआर 3

कारवाँ के चलने से कारवाँ के रुकने तक

मंज़िलें नहीं यारो रास्ते बदलते हैं

मौज मौज तूफ़ाँ है मौज मौज साहिल है

कितने डूब जाते हैं कितने बच निकलते हैं

कितने दीप बुझते हैं कितने जलते हैं

अज़्म-ए-ज़िंदगी ले कर फिर भी लोग चलते हैं

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