सहबा लखनवी के शेर
कारवाँ के चलने से कारवाँ के रुकने तक
मंज़िलें नहीं यारो रास्ते बदलते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मौज मौज तूफ़ाँ है मौज मौज साहिल है
कितने डूब जाते हैं कितने बच निकलते हैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कितने दीप बुझते हैं कितने जलते हैं
अज़्म-ए-ज़िंदगी ले कर फिर भी लोग चलते हैं
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड