सैफ़ ज़ुल्फ़ी के शेर
चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव में
मैं ख़ुद ही जल रहा हूँ ग़मों के अलाव में
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काग़ज़ पे उगल रहा है नफ़रत
कम-ज़र्फ़ अदीब हो गया है
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एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद
चुप हूँ मुझे सुकून मयस्सर हो जिस तरह
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