साजिद हमीद के शेर
राएगाँ हो रही थी तंहाई
तेरी यादों का कारोबार किया
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दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ
बोझ ऐसा भी नहीं है कि उठा भी न सकूँ
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ऐसी आग फ़लक से बरसेगी इक दिन
ख़ाक हवा पानी पत्थर जल जाएँगे
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समझ में वक़्त का आया करिश्मा
नज़र ख़ुद पर जो डाली है दिनों ब'अद
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