सज्जाद बलूच के शेर
अफ़्सोस ये वबा के दिनों की मोहब्बतें
इक दूसरे से हाथ मिलाने से भी गए
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उसे मालूम था ये शाम-ए-जुदाई है तो बस
आख़िरी बार बहुत देर इकट्ठे बैठे
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राह का शजर हूँ मैं और इक मुसाफ़िर तू
दे कोई दुआ मुझ को ले कोई दुआ मुझ से
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