सज्जाद शम्सी के शेर
हैं क़हक़हे किसी के किसी की हैं सिसकियाँ
शामिल रहा ख़ुशी में किसी बेबसी का शोर
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ये कैसा हादसा गुज़रा ये कैसा सानेहा बीता
न आँगन है न छत बाक़ी न हैं दीवार-ओ-दर बाक़ी
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