सलीम फ़ौज़ के शेर
बहुत क़रीब से कुछ भी न देख पाओगे
कि देखने के लिए फ़ासला ज़रूरी है
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सुकूत बढ़ने लगा है सदा ज़रूरी है
कि जैसे हब्स में ताज़ा हवा ज़रूरी है
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