सलीम सरफ़राज़
ग़ज़ल 15
अशआर 3
मिरे हमराह क्यूँ वो शख़्स चलना चाहता है
सफ़र के जोश में क्या आगही गुम हो गई है
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सभी ख़ुश हैं कि सारे गुम-शुदा फिर मिल गए हैं
मुझे ग़म है कि अब तेरी कमी गुम हो गई है
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ये किन तिश्ना-लबों की फ़ौज गुज़री है इधर से
कहीं कुछ कम कहीं पूरी नदी गुम हो गई है
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