सलमान अख़्तर
ग़ज़ल 24
अशआर 29
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
मुझ से मुश्किल सवाल मत पूछो
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इक वही शख़्स मुझ को याद रहा
जिस को समझा था भूल जाऊँगा
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झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
दर्द से बात करो दर्द से लड़ना छोड़ो
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कोई शय एक सी नहीं रहती
उम्र ढलती है ग़म बदलते हैं
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जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
तब कहीं जा के दिल से डर निकला
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