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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Salman Saeed's Photo'

सलमान सईद

1991 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के मशहूर शाइरों में शामिल

नई नस्ल के मशहूर शाइरों में शामिल

सलमान सईद के शेर

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'अजीब ढंग से मुझ को मिली है आज़ादी

परिंदा पिंजरे में पिंजरा हवा में रक्खा गया

वो हिज्र-ज़ादे शब-ए-वस्ल ये भी भूल गए

चराग़ उन को जलाने नहीं बुझाने थे

फ़क़त ये लकड़ी नहीं है तुम्हारी बैसाखी

शजर के हाथ कटे हैं इसे बनाने में

हम हैं ज़ंजीरों की खन-खन के बिगाड़े हुए लोग

तेरी पाज़ेब की छन-छन में नहीं सकते

उस ने ख़त में बनाएँ हैं आँसू

मैं भी अब सिसकियाँ बनाऊँगा

तिरे कूचे की मिट्टी बा-वफ़ा है

मिरे पैरों से लिपटी जा रही है

फिर उस के बा'द मैं ख़ुद को तलाश करता हूँ

यही ख़राबी है उस को गले लगाने में

जिए हम रौशनी बन कर हमेशा

मरे तो मर के भी तारे बनेंगे

मनाया जा रहा है ग़म तुम्हारा

पुरानी फ़िल्म देखी जा रही है

लोग कहते हैं मुझे इस लिए तन्हाई-पसंद

मुझ से पागल को कहीं पास बिठाना पड़े

किसी भी दर्जा रि'आयत नहीं है वहशत में

बिछड़ के उस से तुम्हें क़हक़हे लगाने थे

हमारे खेल की गुड़िया तुम्ही हो

तुम्हारे खेल का गुड्डा नया है

आप के हाथ में है मुझ से त'अल्लुक़ का रेमोट

आप चाहें तो ये चैनल भी बदल सकते हैं

पहले फिल्में भी हक़ीक़त की तरह होती थीं

अब हक़ीक़त में भी फ़िल्मों की तरह होता है

ख़ून से मज़लूम के हो तो गए रौशन चराग़

रौशनी ऐसी हुई फिर शहर अंधा हो गया

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