सलमान सईद के शेर
'अजीब ढंग से मुझ को मिली है आज़ादी
परिंदा पिंजरे में पिंजरा हवा में रक्खा गया
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वो हिज्र-ज़ादे शब-ए-वस्ल ये भी भूल गए
चराग़ उन को जलाने नहीं बुझाने थे
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फ़क़त ये लकड़ी नहीं है तुम्हारी बैसाखी
शजर के हाथ कटे हैं इसे बनाने में
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हम हैं ज़ंजीरों की खन-खन के बिगाड़े हुए लोग
तेरी पाज़ेब की छन-छन में नहीं आ सकते
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उस ने ख़त में बनाएँ हैं आँसू
मैं भी अब सिसकियाँ बनाऊँगा
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तिरे कूचे की मिट्टी बा-वफ़ा है
मिरे पैरों से लिपटी जा रही है
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फिर उस के बा'द मैं ख़ुद को तलाश करता हूँ
यही ख़राबी है उस को गले लगाने में
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जिए हम रौशनी बन कर हमेशा
मरे तो मर के भी तारे बनेंगे
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मनाया जा रहा है ग़म तुम्हारा
पुरानी फ़िल्म देखी जा रही है
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लोग कहते हैं मुझे इस लिए तन्हाई-पसंद
मुझ से पागल को कहीं पास बिठाना न पड़े
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किसी भी दर्जा रि'आयत नहीं है वहशत में
बिछड़ के उस से तुम्हें क़हक़हे लगाने थे
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हमारे खेल की गुड़िया तुम्ही हो
तुम्हारे खेल का गुड्डा नया है
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आप के हाथ में है मुझ से त'अल्लुक़ का रेमोट
आप चाहें तो ये चैनल भी बदल सकते हैं
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पहले फिल्में भी हक़ीक़त की तरह होती थीं
अब हक़ीक़त में भी फ़िल्मों की तरह होता है
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ख़ून से मज़लूम के हो तो गए रौशन चराग़
रौशनी ऐसी हुई फिर शहर अंधा हो गया
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