सनाउल्लाह फ़िराक़ के शेर
दिल थामता कि चश्म पे करता तिरी निगाह
साग़र को देखता कि मैं शीशा सँभालता
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उँगलियाँ घिस गईं याँ हाथों को मलते मलते
लेकिन अफ़्सोस नविश्ता न मिटा क़िस्मत का
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