सरदार सलीम
ग़ज़ल 11
अशआर 7
कुछ ऐसा हो कि तस्वीरों में जल जाए तसव्वुर भी
मोहब्बत याद आएगी तो शिकवे याद आएँगे
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फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ
मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मिरे अंदर तक आ
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आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया
तुझ को देखा और उस के बाद अंधा हो गया
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बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम'
ये नज़ारा यार के कूचे में रह के देखना
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नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं
वक़्त की धूप में मादूम हुआ जाता हूँ
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