आईना चुपके से मंज़र वो चुरा लेता है
तू सजाता है बदन जब कभी उर्यानी से
सरफ़राज़ नवाज़10 नवंबर1977 को उत्तर प्रदेश के अदबी शहर आज़मगढ़ के अंजान शहीद में पैदा हुए। फ़िलहाल आप पठन पाठन विभाग से सम्बद्ध हैं और शिबली नेशनल कॉलेज, आज़म गढ़ में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
आरंभिक शिक्षा गांव के मदरसे दार उल-उलूम हुसैन आबाद अंजान शहीद से हासिल की। इंटरमीडिएट शिबली इंटर कॉलेज आज़मगढ़ और बी.ए शिबली नेशनल कॉलेज आज़मगढ़ से मुकम्मल किया। एम.ए अंग्रेज़ी गोरखपुर यूनीवर्सिटी से किया और दौरान मुलाज़मत के दौरान टीचर फैलोशिप के तहत जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पी.एचडी की डिग्री हासिल की।
घर का माहौल अदबी था। वालिदा अरबी ज़बान की उस्तानी थीं और वालिद साहिब उस्ताद के साथ साथ शायर भी थे। इसलिए इस अदबी माहौल में शायरी की तरफ़ रग़बत स्वाभाविक थी।
सरफ़राज़ नवाज़ की शायरी में परम्परा और आधुनिकता का हसीन संगम देखने को मिलता है। उनकी ग़ज़लियात में कल्पना की रंगा-रंगी और विविधतापूर्ण है। आपकी अभिव्यक्ति की शैली और विचार का क्षेत्र विस्तृत है। वैचारिक व्यक्तित्व और संवेदनशीलता उनकी शायरी की अहम विशेषताएं हैं।
जहां तक आपकी रचनाओं का ताल्लुक़ है आपकी दो किताबें “नवाए मग़रिब” (चंद मशहूर अंग्रेज़ी नज़्मों का छंदोबद्ध उर्दू अनुवाद) और “इस छोटे से लम्हे में” (नज़्में) के नाम से मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं जिनमें से आपकी नज़्मों का संग्रह “इस छोटे से लम्हे में” को उर्दू अकेडमी उतर प्रदेश से पुरस्कृत किया जा चुका है।