सरमद सहबाई
ग़ज़ल 14
नज़्म 18
अशआर 3
सब की अपनी मंज़िलें थीं सब के अपने रास्ते
एक आवारा फिरे हम दर-ब-दर सब से अलग
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उस के जाने का यक़ीं तो है मगर उलझन में हूँ
फूल के हाथों से ये ख़ुश-बू जुदा कैसे हुई
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उस के मिलने पे भी महसूस हुआ है 'सरमद'
उस ने देखा ही न हो मैं ने बुलाया ही न हो
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वीडियो 12
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