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सरशार सिद्दीक़ी

1926 - 2008 | पाकिस्तान

सरशार सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 10

नज़्म 4

 

अशआर 7

इक कार-ए-मुहाल कर रहा हूँ

ज़िंदा हूँ कमाल कर रहा हूँ

नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा

धूप दीवार से आँगन में उतर आई है

मैं ने इबादतों को मोहब्बत बना दिया

आँखें बुतों के साथ रहीं दिल ख़ुदा के साथ

मिरी तलब में तकल्लुफ़ भी इंकिसार भी था

वो नुक्ता-संज था सब मेरे हस्ब-ए-हाल दिया

'सरशार' मैं ने इश्क़ के मअ'नी बदल दिए

इस आशिक़ी में पहले था वस्ल का चलन

लोरी 1

 

पुस्तकें 6

 

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