aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सऊद उस्मानी

ग़ज़ल 23

अशआर 28

हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को

कितनी दूर से आई है ये रेत से हाथ मिलाने को

पक्का रस्ता कच्ची सड़क और फिर पगडंडी

जैसे कोई चलते चलते थक जाता है

मुझे ये सारे मसीहा अज़ीज़ हैं लेकिन

ये कह रहे हैं कि मैं तुम से फ़ासला रक्खूँ

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जान है तो जहान है दिल है तो आरज़ू भी है

इशक़ भी हो रहेगा फिर जान अभी बचाइए

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मैं चाहता हूँ उसे और चाहने के सिवा

मिरे लिए तो कोई और रास्ता भी नहीं

पुस्तकें 2

 

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