सीमा नक़वी के शेर
मुझे भी हक़ है मिटा दूँ नसीब की स्याही
मैं अपने हिस्से की ख़ुशियाँ किसी पे वारूँ क्यों
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चला गया जो मुझे छोड़ कर न जाने कहाँ
मैं उस के नाम पे ये ज़िंदगी गुज़ारूँ क्यों
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